निरोगी व्यक्तिकी दिनचर्या

निरोगी व्यक्तिकी दिनचर्या :- सुश्रुत संहिता के लेखक महर्षी सुश्रुत इन्होने लिखा है। जिस व्यक्ति के तीन्हों दोष वात, पित्त और कफ समान हैं। जठरग्नि सम (ना अति मंद ना अति तीव्र) है शरीर के सप्त धतुरस, रक्त,मास, भेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य उपयुक्त प्रमाण मे रहकर मल-मूत्र की क्रिया योग्य प्रकारसे होरहि हो दसो इन्द्रिय (कान, नाक, आखे, त्वचा, जिवा, गुदा, नितम्ब, हात, पाव और मन) इनका स्वामी आत्माभी प्रसन्न रहेगा ऐसा वाक्ति निरोगी कहाजा सकता है।
निरोगी वाक्ति के पांच आधार स्तम्ब है।
1) आहार:- आहार से वाक्तिका शरीर निर्माण होता है। आहार का शरीर पे ही नही तो मन पे भी पूरा प्रभाव पड़ता है।
निरोगी कौन है? जो व्यक्ति योग्य मात्रा मे और ऋतु के अनुकूल भोजन करता है और अपनी प्रकृति को देखते हुए (वात, पित्त और कफ ) जानकर भोजन करता है वह निरोगी होता है। वात प्रकृति होगी तो शरीर मे वायु विकार होता है वह लोग चावल या खट्टा न खाए । लेन्दी पीपल, सुंट, अदरक इ. का उपयोग करे। पित्त प्रकृति वाले लोगोने गरम, तलेहुए खाद्य पदार्थ ना खाए । ककड़ी और खीरा खाना लाभदायक है। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति ठंडीचीजे जैसे चावल, दही, ताक, जादा प्रमाण ना खाये दूध मे लेन्दी पीपल , हल्दी डालकर ले सकते है।
पेट का आधा भाग अन्न के लिए , चौथाई भाग पेय पदार्थो के लिए और बचा हुआ भाग वायु के लिए छोडना चाहिए। जिस ऋतु मे जो फल निकलते है वह फल वही ऋतु मे लेना चाहिए।
खाने का समय एक होना चाहिए असमय खाने से अपचन होता है। दिन मे एक बार खाता है वह योगी दो बार खाने वाला रोगी तीन बार खाने वाला महारोगी ऐसा कहा जाता है। शाम को सात बजे से आठ बजे के बीच मे खाना खाना चाहिए। खाना चबाकर खाना चाहिए। खाना खाने के बाद आधा घंटा पानी नही पीना चाहिए। एक निवाला बतिस बार चबाना चाहिए नही तो 20 बार तो चबाना ही चाहिए। खाना tv देखते हुए या क्रोध् मे न खाये। जो व्यक्ति सुबह पानी पिता है, रात को खाना खाने के बाद दूध पिता है और दोपहर को खाना खाने के बाद छाछ पिता है उसे वैद्य के पास जाना नही पड़ता। खाने मे पांच रस होने चाहिए सबसे पहले मीठा खाना चाहिए बाद मे खट्टा फिर तीखा फिर तुरट और आखरी मे कड़वा ।
2) निद्रा :- निद्रा यह ऐसी है । इसका महत्व जिसे नींद नही आती वही समझ सकता है। नींद न आने से आदमी पागल भी हो सकता है। निरोगी व्यक्ति के लिए छ: घंटा सोना बोहोत है। छोटा बच्चा और बूढ़े लोगोंको आठ घंटा सोना चाहिए। सायंकाल मे जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना उन्नति की और लेके जाता है।
हमने जो गूंगे प्राणी है उनसे कुछ सिखना चाहीये वह जल्दी सो कर सुबह जल्दी उठ जाते है। लेकिन मनुष्य ऐसा प्राणी है जो घुबड़ की तरह रात को जागता है और अपना सुबह का भाग्य डूबा देता है। अगर आपको सुबह  उठने की आदत लगानि है तो 10 दिन जबरदस्ती से उठी ये 11 वे दिन आपको स्वयं जाग आजायेगा।
3) ब्रह्मचर्य :- अपनी इंद्रिय और मन को रोज के कामो से दूर करके ईश्वर और परोपकार मे लगाना ही ब्रह्मचर्य है।
कामका उपभोग लेनेसे कामवृति शांत नही होती जैसे अग्नि मे समिधा डालने से अग्नी और प्रज्वलित होती है वैसेही भोग भोग भोगने से वासना शक्ति और अधिक बढती है। ऐसा महर्षि मनु ने कहा है।
4) व्यायाम :- देह धर्म के लिए जैसे आहार की आवश्यकता होती है वैसे ही आसन-प्राणायाम या व्यायाम की भी अति आवश्यकता होती है। व्यायाम ना करने से शरीर अस्वस्त, निरोगी और निरोगी और सुंदर बनता है। हृदयरोग, डायबिटीज, मोटापा, वातरोग, बवासीर, गॅस, ब्लैडप्रेशर, मानसिक तनाव इ. मुख्य कारण है व्यायाम ना करने के।
5) स्नान :- व्यायाम या आसन होने के बाद शरीर शांत होने के बाद स्नान करने से पूरा शरीर साफ होता है और पूरे दिन उत्साह बना रहता है। नहाने के बाद प्राणायाम कर सकते है। जो व्यक्ति रोज नही नहाता उसका चेहरा निस्तेज होता है और उसके पास कोईभी जाने से कत्राता है। उसकाभी किसी काम मे मन नही लगता और उसे नगीन जैसा भयानक रोग भी हो सकता है।

6)ध्यान:- निरोगी व्यक्ति सौच, स्नान , आसन इ. नित्यकर्म होनेके बाद सुख , शांति और आनन्द की कामना रखने के हर व्यक्तिने कम से कम 15 मि. तक ध्यान, उपासना अव्यश्य करनी चाहिये। किसी भी भगवान का ध्यान और मंत्र का जाप करनेसे परम शक्ति, शांति और आनंद मिलता है।

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