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जून, २०१६ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

सर्वांगासन

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सर्वांगासन सर्वांगासन:- स्थिति:- पीठ के बल लेटकर किए जानेवाले आसन की स्थिती। कृति:- 1. दोनों पैर एड़ियां 45 अंश (एड़ियां दिखने तक) उठाएं। 2. पैर 90 अंश तक लाएं। 3. हाथ के सहारे से कमर उठाकर दोनों पैर सिर के ऊपर जमीन से 1 हाथ ऊंचाई पर रखे। 4. दोनों पैर सीधे खड़े करें, हाथों से पीठ को सहारा दें, ठुड्डी गले से स्पर्श करें । ।। पूर्ण स्थिती ।। 5. पैरों को थोड़ा पीछे ले जाएं, जमीन से एक हाथ ऊंचाई पर रखें । 6. पैर 90 अंश तक लाएं । 7. पैरों को 45 अंश पर रखें। 8. दोनों पैर नीचे जमीन पर रखें।  ।। पूर्व स्थिती ।। सर्वांगासन करें तो उसका विपरीत आसन अवश्य करें। सर्वांगासन का पूरक आसन है मत्स्यासन । लाभ :- 1. पाचन क्रिया सुधरती है। 2. रक्त का संचार बडता है। 3. शरीर पुष्ट होता है।चूंकि इससे शरीर के सभी अंगो का आसन होता है अंतः इसे सर्वांगासन कहते है । योगाचार्य ने इसे आसनों का राजा कहा है। 4. इस आसन से गले की ग्रंथियों (थायराइड) पर दबाव आने से शरीर को पुष्ट करनेवाले व अन्य कार्य करने वाले स्त्राव उनसे निर्मित होते है। 5. नेत्र विकार जैसे आँखो में पीड़ा, जलन या पानी निकलना, दृष्टि मंदता में लाभदायीं

पीठ के बल लेटकर किये जाने वाले आसन की स्तिथि

पीठ के बल लेटकर किये जाने वाले आसन की स्थिति:- पीठ के बल लेटकर दोनों पैर सीध, घुटने से न मोड़ते हुए, एक दूसरे से जुड़े हुए, पैरों के तलवे व अंगुलियां अपनी ओर खींची हुई, सम्पूर्ण शरीर एक रेखा में, दोनो हाथ की भुजा कानों से लगी हुई। यह है पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसन की स्थिती कोईभी आसन करने से पहले आसन की स्थिती बनाना जरूरी है। स्थिती बराबर होगी तो आसन भी बराबर होगा।

पवनमुक्तासन

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पवनमुक्तासन:- स्थिति:-पीठ के बल लेटकर किए जानेवाले आसन की स्थिती। यह आसन 3 क्रियाओं(steps) में किया जाता है। क्रिया नं 1:- 1. दाहिना पैर 45 अंश तक उठाएं । 2. दाहिना पैर को 90 अंश तक उठाएं। 3. दायां पैर घुटने से मोड़कर घुटना दोनों हाथों से पेट पर दबाएं। 4. घुटने को ठुड्डी से लगातार बाया पैर सीधा 3-5 बार अंदकृति में घुमाएं। ।।पूर्व स्थिति।। 5. सिर और बायां पैर जमीन पर रखें। 6. दाहिना पैर छोड़कर 90 अंश तक लाएं, हाथ पीछे सिर की ओर फैलाएं। 7. दाहिना पैर 45 अंश तक लाएं। 8. दाहिना पैर जमीन पर लाएं। ।।पूर्व स्थिति।। क्रिया नं 2:- इसी प्रकार (1 से 8 तक सभी क्रियाएं) बाएं पैर से करें। क्रिया नं 3:- (ऊपर दिखाए गए चित्र नं 2 के अनुसार) 1. सीधा सोकर दोनों पैर (एड़ी दिखने तक)45 अंश तक उठाएं। 2. दोनों पैर 90 अंश तक खड़े करें। 3. दोनों घुटने मोड़कर हाथों से पैर सीने पर दबाएं। सिर उठाकर माथा घुटनों पर लगाएं। 4. 2-3 बार दाएं-बाएं लूढ़कें। 5. 2-3 बार ऊपर- नीचे होवें। ।।पूर्व स्थिति।। 6. दोनों पैर 90अंश तक लाएं। 7. पैर 45 अंश तक लाएं। 8. पैर जमीन पर रखें। ।। पूर्व स्थिति।। 9. 5min तक शवासन मे लेटे रहें। लाभ

आसन के प्रकार

वैसे तो आसनों की संख्या उतनी है जितनी संसार में योंनियां है परंतु हठयोग में 84 योगासनों का उल्लेख है, जिसमें से चार आसन ध्यानात्मक- सुखासन,पद्मासन, सिद्धासन व स्वस्तिकासन है और शेष व्यायामात्मक है। आसन के कुल तीन प्रकार है । 1) शरीर संवर्धनात्मक - शरीर को बढ़ाने वाले आसन उदा. सर्वांगासन 2) ध्यानात्मक - जिस आसन मे बैठकर ध्यान किया जाता है| उदा. पद्मासन 3) शिथीलि कारक - शरीर को शिथिल करने वाले आसन उदा. शवासन अन्य वर्गीकरण के अनुसार आसन के 4 प्रकार है- 1) पीठ के बल लेटकर किये जानेवाले आसन - उदा. पवनमुक्तासन, मत्स्यासन। 2) पेट के बल लेटकर किए जानेवाले आसन - उदा. धनुरासन, भुजंगासन । 3) बैठकर किए जानेवाले आसन - उदा. पद्मासन, योगमुद्रा । 4) खड़े होकर किये जानेवाले आसन - उदा. ताडासन, गरुड़ासन । -------------------------------------------------------------------

आसन उपयोगी नियम

आसन उपयोगी नियम:- 1) समय:- आसन सुबह या शाम को कर सकते है। अगर दोनो समय नही कर सकते हो तो सुबह का समय सही है। सुबह शुद्ध वातावरण, शुद्ध ऑक्सीजन और मन शांत रहता है। सुबह पेट खाली रहता है। दोपहर का खाना खाने के 5-6 घंटे बाद शाम को आसन करना चाहिए। सुबह पेट ख़ाली होना चाहिए अगर पेट ठीक से साफ ना हुआ हो तो रात को तांबे के बर्तन मे रखा हुआ पानी जादा से जादा पीना चाहिए या फिर कुनकुना पानी पीकर पवनमुक्तासन, सर्वांगासन करना चाहिए पेट साफ होगा। या फिर रात खाना खाने के बाद त्रिफला चूर्ण 1 ग्लास कुनकुना पानी के साथ ले सकते है। 2)स्थान:- स्वच्छ, शांत और एकांत स्थान आसनके लिए उत्तम है। अगर पेड़ की हरयाली के पास, बाग, तलाब या मंदिर के पास आसन किया जाये तो उत्तम है। अगर घर मे आसन प्राणायाम कर रहे हो तो शुद्ध घी का दिया लगाये या धूपबत्ती लगाकर वातावरण शुद्ध और सुगन्धित कर ले। 3)वेशभूषा:- आसन करते समय कपड़े कम और सुविधाजनक होने चाहिए। पुरुष लोग हाफ पैंट और बनियान या कुर्ता पैजामा पहन सकते है। औरोतोने सलवार कमीज पहन सकते है। और ओ भी जादा ढीला ढ़ाला हो इसका ध्यान रखिये। 4)आसन और अभ्यास का समय:- आसन सीध

सुश्म व्यायाम या शरीर संचालन

सुश्म व्यायाम या संचालन :- आसन के लिए तयार करने हेतु व शरीर मे लचीलापन लाने के लिए संचालन किया जाता है। जिस स्तिथि (खड़े होकर या बैठकर या पीठ के बल या पेट के बल) मे आसन करना है। पहले उस स्तिथि मे शरीर संचालन अवश्य करे, इससे उस स्तिथि मे आसन करने मे सुविधा होती है। संचालन के 5 प्रकार होते है। 1) शरीर संचालन  2) पाद संचालन 3) संधि संचालन 4) गर्दन संचालन 5)नेत्र संचालन 1) शरीर संचालन:- अ) पीठ के बल:- जमीन पर बिछौना बिछाकर सीधा लेटे अर्थात पीठ के बल लेटे। दोनो हाथ ऊपर सिर की ओर कानो से लगे हुए। सांस लेकर दोनो पैर जमीन से 45 अंश उचाई पर उठाये व 3-4 बार ऊपर नीचे हिलाते रहे। अंत मे पैर जमीन पर रखकर सांस छोडे। जब शरीर स्थिर रहे तब सांस छोड़ते लेते रहे। 1. कमर को स्थिर रखकर कमर से ऊपर का भाग दाहिने बाजू ले जाइये। 2. फिर पूर्ववत स्थिति मे आइये । 3. इसी तरह कमर से ऊपर का शरीर का हिस्सा बाये बाजू मे ले जाइये। 4.फिर पूर्व स्थिति मे आइये। 5. इसी प्रकार कमर को स्थिर रखकर कमर से नीचे का शरीर का हिस्सा दाहिने बाजू ले आइये। 6. फिर पूर्व स्थिति मे आइये। 7.इसी प्रकार कमर को स्थिर रखकर कमर से नीचे

योगासन के नियम

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योगासन के नियम :- 1) योगासन के लिए कम से कम 30 मिनट और अधिक से अधिक 60 मिनट का समय काफी होता है। 2) योगासन हेतु प्रातः काल का समय सर्बोत्तम है लेकिन अनुभव मे आया है कि सायंकाल शरीर मे लचीलापन अधिक होता है इसलिए सायंकाल मे भी कर सकते है। ग्रीष्मकाल मे खुले वातावरण मे तथा वर्षा व शितऋतु मे कमरे मे योगासन करे। 3) प्रातःकाल शौच मंजन आदि से  निवरुत्त होकर खालि पेट ही योगासन करना सवोत्तम है। 4) आसन के तुरंत बाद स्नान कर सकते है। दमा, ब्रांकाइटिस व साइनोसाइटिस के रोगी गर्म जल से ही स्नान करे। योगाभ्यास के लिए नियमितता आवश्यक है। 5) आसन करते समय ध्यान या प्रार्थना की जा सकती है। 6) आसन करते समय तेज हवा नही लगनी चाहिए। 7) भोजन के 4-5 घंटे बाद या हल्के नाश्ते के 2 घंटे बाद योगासन कर सकते है। 8) प्रतिदिन नियमित आसन करना चाहिये। 9) अपने आसन का निरीक्षण व पुनः निरीक्षण करे और इस कार्य को अपनी आदत बना ले। 10) महिलाओ को मयूरासन नही करना चाहिए। 11) हॄदय रोग तथा रक्तचाप के रोगीयोंको बिना डॉक्टर के परामर्श के योगासन नही करना चाहिए। वह प्राणायाम कर सकते है। 12) यदि कोई आसन आपके शरीर के अनु

योग संबंधी मिथ्या धारणाएं

योग संबंधी मिथ्या धारणाएं :-        योग एक व्यापक विषय है। वस्तुतः इसमे जीवन की परिपूर्णता के लिये ज्ञान-अज्ञान सभी प्रकार के ज्ञान व मार्गो का समावेश है। इसे मनुष्य जीवन के सर्वांगीण विकास की कुंजी, व्यधिमुक्त जीवन जीने व जीवन मे योग्य शिक्षा प्राप्त करने की कला कह सकते है। केवल अज्ञान, पुर्वाग्रह इत्यादि के कारण आज भी सर्वसामान्य के मन मे इस संबंध मे अनेक मिथ्या धारणाए है जो की निम्नलिखित है। 1) योग ऋषि मुनियो के लीये है :-  पूर्व काल मे योगविद्या केवल ऋषि-मुनियो तक ही सीमित थी। इस कारण यह विद्या केवल साधु, सन्यासी, फकीर, वैरागी इत्यादि के लिये है, ऐसी धारणा निर्मित हुई। जबकि सन्यास अर्थात छोडना, योग अर्थात जोड़ना। यह भूमिका होने के कारण योग सबके लिये व सबको जोड़ने वाला है । योग सबके लिए उपयुक्त है। इस लिए योग सन्यासी के लिये है यह एक मिथ्या ही कही जायेगी। 2)योग एक चमत्कार है:- कई ढोंगी साधु, फकीर, बाबा, संत कांच खाना, एसिड पीना, पारा पीना, आग पर चलना इत्यादि कृत्य कर यह सब योग के कारण ही साध्य है, ऐसा दावा करते है। इस कारण योग अर्थात चमत्कार व इसमे अदभुत विलक्षण क्षमता होने की म

अष्टान्ग योग

अष्टान्ग योग:- महर्षि पतंजलि के अनुसार यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि यह आठ योग के अंग है इन सब योग के अंग का पालन करनेपर कोईभी व्यक्ति योगी बन सकता है। यह योगिक अंग योगीके लिए ही नही बल्कि जो जीवन मे स्वयम्पूर्ण सुखी होना चाहता है उसके लिए भी है। 1) सभी इनद्रियोंको हिंसाके अशुभ भावना से दूर करके आत्मापर केंद्रित किया जाता है उसे यम कहते है। इसके अंतर्गत पाँच भाव आते है उसे भी विस्तार से देखते है। अ) अहिंसा:- इसका अर्थ है कोईभी प्राणिके मन, वचन और कर्मसे कष्ट ना देना किसीको भी कटु शब्द न बोलना और कोईभी प्राणी पर हिंसा ना करना यह अहिंसा होती है। ब) सत्य :- जैसा हम देखते है, सुनते है और जगते है वैसे ही शुद्ध हेतुसे तुम देखते हो सुनते हो या समझते हो वैसे ही बोलना शुद्ध वाणीको अनुसार कार्य करना इसेही सत्य कहते है।ऐसि वाणी बोलिये जिसे दुसरो को दुख ना हो। क) अस्तेय:- प्रभुने जो हमे दिया है उसीमे खुश रहना दुसरो की चिजोको चोरीसे लेना या सोचना भी चोरी है । अस्तेय का मतलब ही है चोरी ना करना । ड) ब्रह्मचर्य :- काम वासनाको उत्तेजित करनेवाला आहार, दृश्य - श्रव्

निरोगी व्यक्तिकी दिनचर्या

निरोगी व्यक्तिकी दिनचर्या :- सुश्रुत संहिता के लेखक महर्षी सुश्रुत इन्होने लिखा है। जिस व्यक्ति के तीन्हों दोष वात, पित्त और कफ समान हैं। जठरग्नि सम (ना अति मंद ना अति तीव्र) है शरीर के सप्त धतुरस, रक्त,मास, भेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य उपयुक्त प्रमाण मे रहकर मल-मूत्र की क्रिया योग्य प्रकारसे होरहि हो दसो इन्द्रिय (कान, नाक, आखे, त्वचा, जिवा, गुदा, नितम्ब, हात, पाव और मन) इनका स्वामी आत्माभी प्रसन्न रहेगा ऐसा वाक्ति निरोगी कहाजा सकता है। निरोगी वाक्ति के पांच आधार स्तम्ब है। 1) आहार:- आहार से वाक्तिका शरीर निर्माण होता है। आहार का शरीर पे ही नही तो मन पे भी पूरा प्रभाव पड़ता है। निरोगी कौन है? जो व्यक्ति योग्य मात्रा मे और ऋतु के अनुकूल भोजन करता है और अपनी प्रकृति को देखते हुए (वात, पित्त और कफ ) जानकर भोजन करता है वह निरोगी होता है। वात प्रकृति होगी तो शरीर मे वायु विकार होता है वह लोग चावल या खट्टा न खाए । लेन्दी पीपल, सुंट, अदरक इ. का उपयोग करे। पित्त प्रकृति वाले लोगोने गरम, तलेहुए खाद्य पदार्थ ना खाए । ककड़ी और खीरा खाना लाभदायक है। कफ प्रकृति वाले व्यक्ति ठंडीचीजे जैसे चावल, दही

योग के प्रकार

योग के प्रकार:- दत्तात्रेय योगशास्त्र और योगराज उपनिषद मे योग के चार प्रकार बताये गए है। इन के बारे मे विस्तार से जानेंगे 1) मंत्रयोग :- मातृकादियुक्त मंत्र 12 वर्ष विधिवत जप करनेसे अणिमा इत्यादि सिद्धि साधक को प्राप्त होती है। 2) लययोग :- दैनिक क्रिया करते करते सदैव ईश्वर का ज्ञान करना। 3) हठ्योग :- अलग अलग मुद्रा, आसन, प्राणायाम, और बंध के प्रयोग से शरीर को निर्मल और मन को एकाग्र करना हठ्योग होता है। 4) राजयोग:- यम-नियम के प्रयोग से चित्त निर्मल करके ज्योतिर्मय आत्माका  साक्षात्कार करना इसको राजयोग कहते है। इसमे राज का अर्थ दीप्तिमान जोतिर्मय और योग का अर्थ समाधि अथवा अनुभूति है। इसके आलावा गीता मे ज्ञानयोग, सांख्ययोग और कर्मयोग के बारेमे सविस्तार से बताया गया है। गीत के पाँचवे अद्याय मे सन्यासयोग और कर्मयोग का  श्रेष्ट ज्ञान दिया गया है।

योगा का छोटासा परिचय

नमस्कार,             मेरा नाम धिरज है । मैं आपको बताऊंगा योग के बारे मे योग यह शब्द वेद, उपनिषद, गीता और पुराण से भी पहले से चला आ रहा है । भारत दर्शन मे योग एक महत्वपूर्ण शब्द है । आत्मदर्शन और समाधि से लेकर कर्मक्षेत्र तक इसका उपयोग शास्त्र मे हुआ है । महर्षि व्यास योग का अर्थ समाधि कहते है। व्याकरण मे 'यूज्' धातु के भावमे घत्र  प्रत्यय करने पर योग शब्द की उत्पति होती है। संयमसे साधना आत्माकी परमातमासे योग करके समाधि का आनंद लेना मतलब योग होता है। योग के प्रकार :- 1)मंत्रयोग 2)लययोग 3)हठ्योग 4) राजयोग इसके अलावा गीतामे ज्ञानयोग , सांख्ययोग, और कर्मयोग है। गीत के पाँचवे अद्याय मे सन्यासयोग और कर्मयोग को श्रेष्ठ बताया गया है। योग करने से धरती का तमाम सुख मिलता है। 80% रोग योग से दूर होते है।