हलासन

हलासन:-
इस आसन को करते समय शरीर का आकार हल के समान होता है इसलिये इसे हलासन कहते है।

स्थिती:- पीठ के बल लेटे हूये आसन की स्तिथी।

कृति:- 1) हथेलिया कमर की ओर रखकर दोनों हाथों को दोनों तरफ से लंबा करे, दोनों पैर 45° अंश तक उठाएं ।
2) पुठ्ठे उठाते हुए पैर खडे़ करे अर्थात पैरों को 90° अंश तक लाएं।
3) पुठ्ठे उठाकर पैर सिर की ओर जमीन से एक हाथ ऊंचाई पर ले जाएं।
4) पैर सिर की तरफ जमीन तक ले जाएं। (घुटने व पैर सीधे रहें परंतु जमीन कों टिकाएं नहीं)।। पूर्ण स्थिती ।।
5) पैर जमीन से 15° अंश तक उठायें।                             
6) कमर जमीन पर रखकर पैर खडे़ करें। पैर आधे पर नीचे लाएं अर्थात पैर 90° अंश तक लाएं।।                   
7) पैर 45°अंश पर लाएं।।                                           
8) पैर सीधे करें। ।। पूर्व स्थिती ।।                                 
हलासन करने के बाद उसका पूरक आसन (चक्रासन) भी अवश्य करना चाहिए।।                                             लाभ:- 1) रीढ़ मजबुत होती है।।                                      
         2) शरीर की सभी नाडियां व प्रत्यंग सबल बनते है।
3) पीठ और पेट की पेशियां मजबुत होती है।
4) कब्ज दूर होता है।।                              
5) यकृत व प्लीहा संबंध रोग दूर होते हैं।।    
6) मोटापे के लिए विशेष आसन है।।           
        7) आमाशय, मलाशय, मुत्राशय, अण्डकोष व पेट  संबंधी विकार नष्ट होते हैं।।             
8) अण्डवृध्दी में लाभ मिलता है।।             
  9) पेट में वायु रुकने से और नाभि सरकने से  होनेवाली पीड़ा दूर होती है।।          
समय:- 2 मिनट ।                                                          
विशेष:- प्रारंभ में इस आसन को उतना ही करना चाहिए       जितना कि आसानी से किया जा सके। जबरदस्ती भूल से भी न करना चाहिए । यकृत और प्लीहा की बढी़ हुई अवस्था में यह आसन नहीं करना चाहिए।       

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